मध्यप्रदेश में कुछ मंत्रियों के विभाग बदले जा सकते हैं। अमरवाड़ा उपचुनाव जीते कमलेश प्रताप शाह का डॉ. मोहन कैबिनेट में शामिल होना तय है। बीजेपी ने शाह को मंत्री बनाने का कमिटमेंट किया है।
इसके साथ ही लोकसभा चुनाव से पहले जातीय समीकरण साधने के लिए जिन विधायकों को मंत्री बनाया गया था, उनमें से कुछ को बड़े निगम-मंडल की कमान देने पर विचार चल रहा है l नई जिम्मेदारी के साथ उन्हें मंत्री का दर्जा भी दिया जाएगा। जो सीनियर विधायक मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किए गए थे, उनकी वापसी भी हो सकती है।
मोहन मंत्रिमंडल के विस्तार के संकेत इसलिए भी हैं, क्योंकि 8 जुलाई को कैबिनेट मंत्री बनाए गए रामनिवास रावत को अब तक किसी विभाग की जिम्मेदारी नहीं दी है। मोहन कैबिनेट में 3 पद अब भी खाली हैं। यानी शाह के साथ 2 और विधायकों को मंत्री बनाया जा सकता हैं। पढ़िए जातीय समीकरण साधने के लिए किसे मंत्री बनाया गया था और वो कौन से सीनियर विधायक हैं, जिन्हें अब मंत्री बनाया जा सकता है।
नारायण सिंह पंवार: मछुआ कल्याण एवं मत्स्य विकास, राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार)
सोंधिया समाज से आते हैं। राजगढ़ जिले की ब्यावरा सीट से विधायक हैं। जातिगत समीकरण को साधने के लिए मंत्री पद मिला। सोंधिया समाज के प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं। समाज में इनका काफी दखल है। यह समाज राजगढ़ जिले के साथ ही उज्जैन संभाग और राजस्थान के कुछ जिले में बहुतायत में है। 9 जुलाई को नारायण पंवार को हाई बीपी की शिकायत के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
लखन पटेल: पशुपालन, राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार)
पटेल कुर्मी जाति से आते हैं। उन्हें मंत्री बनाकर जातीय समीकरण साधा गया था। विंध्य इलाके में कुर्मी जाति की आबादी ज्यादा है। केवल दमोह में ही 2 लाख 30 हजार से ज्यादा कुर्मी (पटेल) मतदाता हैं। पूर्व मंत्री रामकृष्ण कुसमारिया के बाद लखन पटेल इस समाज के दूसरे बड़े नेता हैं।
धमेंद्रसिंह लोधी: संस्कृति, पर्यटन व धार्मिक न्यास, राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार)
धर्मेंद्र सिंह, लोधी समाज से आते हैं। दमोह, सागर और खजुराहो में इस समाज का वोटर निर्णायक भूमिका में है। केवल दमोह में ही लोधी समुदाय के 2 लाख 67 हजार वोटर्स हैं। धर्मेंद्र सिंह लोधी प्रदेश कार्यसमिति सदस्य हैं। छात्र जीवन से आरएसएस से जुड़े और भाजपा में जिला महामंत्री भी रहे। 2018 में पहली बार भाजपा के टिकट पर जीतकर विधानसभा पहुंचे थे।
नारायण सिंह कुशवाहा: सामाजिक न्याय मंत्री
नारायण सिंह कुशवाहा काछी समाज से आते हैं। कुशवाहा-मौर्य समुदाय की मध्य प्रदेश अच्छी खासी उपस्थिति है। उत्तर प्रदेश की सीमा से सटे क्षेत्रों में भी कुशवाहा समाज का प्रभाव है।
दिलीप अहिरवार: वन एवं पर्यावरण, राज्य मंत्री( स्वतंत्र प्रभार)
दिलीप अहिरवार अनुसूचित वर्ग से आते हैं। बुंदेलखंड में इस समुदाय को साधने के लिए उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल किया गया। दिलीप बीजेपी जिला उपाध्यक्ष हैं। भाजपा अनुसूचित जाति मोर्चा के प्रदेश महामंत्री के साथ ही अजा मोर्चा में अन्य पदों पर भी रहे हैं। जिला प्रभारी किसान मोर्चा का दायित्व भी निभाया।
प्रतिमा बागरी: नगरीय विकास एवं आवास, राज्यमंत्री
प्रतिमा सबसे कम उम्र (35 साल) की मंत्री हैं। भाजपा महिला मोर्चा की महामंत्री रहीं। सतना जिला संगठन महामंत्री भी रहीं। पिता जय प्रताप बागरी और मां कमलेश बागरी दोनों पंचायत सदस्य रहे। 2021 के उपचुनाव में भाजपा के टिकट पर चुनाव हार गई थीं। इस बार जीतने में कामयाब रहीं। प्रतिमा को मंत्री बनाकर बघेलखंड के एससी को साधने की पार्टी ने कोशिश की।
अब बात राजनीतिक समीकरण साधने बनाए गए मंत्रियों की..
लोकसभा चुनाव को देखते हुए मंत्रिमंडल में राजनीतिक समीकरणों को साधने के लिए भी चेहरे शामिल किए थे। रतलाम लोकसभा सीट से तीन मंत्री चैतन्य काश्यप, निर्मला भूरिया और नागर सिंह चौहान को मंत्री बनाया गया। चैतन्य काश्यप रतलाम सिटी से विधायक हैं। वहीं निर्मला भूरिया झाबुआ जिले के पेटलावद से चार बार की विधायक और नागर सिंह चौहान आलीराजपुर से चौथी बार जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं।
लोकसभा चुनाव में रतलाम लोकसभा सीट के साथ मालवा-निमाड़ के भील-भिलाला आदिवासी बेल्ट को साधने के लिए निर्मला और नागर सिंह चौहान को मंत्रिमंडल में जगह दी गई। नागर सिंह चौहान की पत्नी अनिता चौहान रतलाम से सांसद चुनी गई हैं। चूंकि दोनों एक ही इलाके से मंत्री है, ऐसे में किसी एक को नई जिम्मेदारी दी जा सकती है।
3 वरिष्ठ विधायक बन फिर बन सकते हैं मंत्री
भाजपा सूत्रों का कहना है कि तीन वरिष्ठ विधायक गोपाल भार्गव, भूपेंद्र सिंह और बृजेंद्र प्रताप सिंह मंत्री पद के प्रबल दावेदार हैं। इन्हें जातीय समीकरण साधने के लिए बनाए गए मंत्रियों के कारण मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिल पाई थी। भाजपा ने भार्गव को लोकसभा चुनाव में स्टार प्रचारक भी बनाया था।
गोपाल भार्गव: मौजूदा विधानसभा के सबसे सीनियर विधायक
रहली से विधायक गोपाल भार्गव मौजूदा विधानसभा के सबसे वरिष्ठ विधायक हैं। उन्होंने 2023 विधानसभा चुनाव में लगातार 9वां चुनाव जीता है। भार्गव 1985 से रहली विधानसभा से चुनाव लड़ते और जीतते आ रहे हैं। 2003 में पहली बार उमा भारती मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री बने थे।
2018 में कमलनाथ सरकार सत्ता में आई तो उन्हें विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाया गया। 2020 में जब शिवराज सरकार ने वापसी की तो उनके साथ शपथ लेने वाले 5 मंत्रियों में भार्गव शामिल नहीं थे, लेकिन मंत्रिमंडल विस्तार में उन्हें शामिल किया किया गया। इस बार डॉ. मोहन सरकार के मंत्रिमंडल में उन्हें जगह नहीं मिली। अब उनकी वापसी के संकेत मिल रहे हें।
भूपेंद्र सिंह: कमलनाथ सरकार गिराने के रणनीतिकारों में से एक
भूपेंद्र सिंह गृह एवं परिवहन और नगरीय प्रशासन जैसे विभागों की जिम्मेदारी संभालते रहे हैं। साल 2020 में कमलनाथ सरकार के सत्ता से बेदखल करने में उनकी मुख्य भूमिका थी। ओबीसी वर्ग को 50% आरक्षण देने के मामले में शिवराज सरकार ने भूपेंद्र को ही आगे किया था।
माना जा रहा है कि शिवराज सिंह के करीबी होने के कारण ही उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया है। शिवराज सरकार में सागर से तीन मंत्री थे, लेकिन अब सिर्फ एक (गोविंद सिंह राजपूत) मंत्री है। भूपेंद्र के मंत्री नहीं बनाए जाने की वजह यह सामने आई थी कि सागर के विधायकों ने उनके खिलाफ मोर्चा खोला था।
बृजेंद्र प्रताप सिंह: संघ व संगठन की पसंद
पन्ना से विधायक बृजेंद्र प्रताप सिंह शिवराज सरकार में खनिज मंत्री थे, लेकिन डॉ. मोहन मंत्रिमंडल में उन्हें जगह नहीं मिली। उन्हें प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा का करीबी माना जाता है। वे चार बार के विधायक हैं और क्षत्रिय समाज से आते हैं। इस कारण जातिगत समीकरण भी उन्हें मंत्री पद नहीं मिलने एक वजह बताई गई। सिंह को संघ व संगठन की पंसद बताया जाता है।